भारत में हर साल होलीका दहन फाल्गुन पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है। यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत व् नकारात्मकता को खत्म करके सच्चाई की रक्षा के लिए लोगो को संदेश देता है आखिर होलीका दहन क्यों मनाया जाता है? आपको बता दें इसके पीछे Holika Dahan Story बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है, जो हमें धर्म और भक्ति की महत्व को समझाती है। आज के इस ब्लॉग में हम आपको होलीका दहन की कथा (Holika Dahan Story in Hindi), इस त्योहार का महत्व, होलिका दहन की पूजा विधि, और इससे जुड़े सभी धार्मिक एवं सामाजिक पहलुओं के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे ।
Holika Dahan Story in Hindi | Holika Dahan Ki Kahani
बहुत समय पहले की बात है यानि सतयुग की जब देवताओं और असुरों के बीच सदैव युद्ध होता रहता था। और असुरों का राजा हिरण्यकशिपु उस समय बहुत ही शक्तिशाली होया करता था। हिरण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न काने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की और एक अद्भुत शक्तिशाली वरदान प्राप्त कर लिया हिरण्यकशिपु ने ब्रह्मा जी से ऐसा वरदान माँगा की उसे कोई भी मनुष्य, देवता, राक्षस या पशु नहीं मार सके। वह न दिन में मरेगा, न रात में। उसे न घर के अंदर, न घर के बाहर मारा जा सके। न उसे किसी अस्त्र (हथियार) से, न किसी शस्त्र (औजार) से मारा जा सके। न वह धरती पर मरे, न आकाश में। इस वरदान के कारण हिरण्यकशिपु बहुत ही शक्तिशाली हो गया इसके बाद इसने स्वर्ग और धरती पर अपना ही राज्य करते हुए।
अपने आप को भगवन मानने लगा उसने अपने राज्य में सभी राज्य्वासियों को आदेश दिया की कोई भी भगवन विष्णु की पूजा नहीं करेगा लोग सिर्फ उसी की ही पूजा करे अगर किसी द्वारा उसके आदेश की उलंघन किया जाता है तो उसे मार दिया जायेगा । लेकिन सोचने की बात यह है की हिरण्यकशिपु का एक पुत्र था जिसका नाम प्रह्लाद था। और वह बचपन से ही भगवन विष्णु का बहुत बड़ा भगत था जब हिरण्यकशिपु को पता लगा की उसका अपना ही बेटा भगवन विष्णु की पूजा करता है तो उसे बहुत ही ज्यादा गुस्सा आया इस दौरान उसने प्रह्लाद को बहुत समझने की कोशिस करी लेकिन वह असफल रहा प्रह्लाद फिर भी भगवन विष्णु जी की पूजा करता था । उसने अपने बाप को साफ मना कर दिया ।
हिरण्यकशिपु को बहुत दुःख हुआ की उसका अपना ही बेटा उस भगवन की पूजा कर रहा है जिस भगवान को उसने अपना शत्रु बना रखा है । इसके बाद हिरण्यकशिपु ने अपने सैनिको को आदेश दिया की प्रह्लाद को मार डाले । इसके बाद उसके सैनिको ने प्रह्लाद को उन्हें पहाड़ो से धकेल दिया लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से बच गया लेकिन इसके पश्चात फिर उन्होंने प्रह्लाद को जहरीले सांपों के बीच डाल दिया लेकिन उसे वहां भी कुछ नहीं हुआ इसके बाद भी उसने अनेक तरीके अपनाए प्रह्लाद को मारने के लिए जैसे की हाथियों के पैरों से कुचलवाना, काल कोठरी में भेजना लेकिन फिर भी प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से बच जाता था । लेकिन हिरण्यकशिपु को जब समझ में नहीं आया की वह प्रह्लाद को कैसे मारे तो उसने अपनी बहन होलिक की मदद लेने की सोची ।
होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला हुआ था जिस कारण अगर वह आग में बैठ भी जाए तो उसे आग से कुछ नहीं होता था । जब उसने अपनी बहन से मदद लिया तो उसने एक योजना बनाई की होलिक प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर स्वयं आग में बैठेगी। और उसका मानना था की प्रह्लाद जलकर भस्म हो जायेगा । होलिका ने एक विशाल चिता बनवाई जिसमे प्रह्लाद को लेकर बैठ गई । लेकिन जैसे ही आग जली तो उसमे होलिका जलकर रख हो गयी लेकिन प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ । ऐसा ही लिए हुआ क्योंकि होलिका को जो वरदान मिला था वो सिर्फ स्वयं की रक्षा के लिए लेकिन उसने इस वरदान का दुरपयोग किया . इसलिए होलिका जलकर भस्म हो गई । प्रह्लाद बच गया क्योंकि उसकी भक्ति सच्ची थी ।
इसके बाद स्वयं हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने की थान ली थी हिरण्यकशिपु गुस्से में था और उसने गुस्से में प्रह्लाद से पूछा की क्या तेरा विष्णु हर जगह है प्रह्लाद ने जवाब देते हुए बोलै हां वह कण कण में है क्रोधित होते हुए हिरण्यकशिपु ने एक खंभे को तोड़ दिया और तभी खंभे से भगवान विष्णु जी का नरसिंह अवतार प्रकट हुआ। भगवान नरसिंह ने हिरण्यकशिपु को संध्या समय अपने नाखुनो से मार दिया उस दौरान न तो दिन था और न ही रात थी न अस्त्र और न शास्त्र था सिर्फ उन्होंने अपने नाखुनो का से मार दिया ।
इस प्रकार भगवन विष्णु की मदद से , अधर्म का अंत हुआ और धर्म की विजय हुई।
होलीका दहन क्यों मनाया जाता है?
1. अच्छाई की बुराई पर विजय
होलीका दहन हम सब को यह सिखाता है कि हमे कभी भी झूठ, पाप और अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि इनका अंत निश्चित है। हिरण्यकशिपु और होलिका जैसे अधर्मी पापी लोग भले ही कितने भी शक्तिशाली क्यों न हो, किन्तु जीत हमेशा सत्य और भक्ति की होती है।
2. नकारात्मकता का अंत
होलिका दहन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, अपितु यह एक नकारात्मकता को खत्म करने का प्रतीक भी है। इस दिन लोग अपनी सभी बुरी आदतों, बुरी भावनाओं और नकारात्मक ऊर्जाओं को खत्म/ छोड़ने के लिए वचन लेते हैं।
3. आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व
इस त्योहार के माध्यम से हमें धर्म, सत्य और भक्ति की शक्ति को समझने का अवसर मिलता है। प्रह्लाद को भगवान विष्णु की कृपा से कोई नुकसान नहीं हुआ, जिससे यह प्रतीत होता है कि जो सच्चे भक्त की रक्षा खुद भगवन करते हैं।
4. कृषि और ऋतु परिवर्तन का संकेत
होलिका दहन का यह पर्व सर्दी के अंत और गर्मी के आगमन का प्रतीक होता है। इस समय किसान नई फसल अच्छी पैदावार के लिए भी कामना करते हैं।
-होलिका दहन की पूजा विधि | Holika Dahan Ki Vidhi
1. शुभ मुहूर्त में होलिका दहन (Holika dahan ka samay)
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त फाल्गुन पूर्णिमा की रात में किया जाता है। हिंदू पंचांग के नियम अनुसार, इस दिन पूजा-अर्चना करी जाती है।
2. होलिका दहन की तैयारी
- लकड़ियाँ, उपले, और सूखी घास इकट्ठा की जाती हैं।
- होलिका दहन के लिए सभी लोग मिलके एक बड़ा ढेर बनाते है, इसमें होलिका और प्रह्लाद के प्रतीक रखते हैं।
- जब पूजा होती है तब गेंहू, चना और नारियल होलिका में चढ़ाए जाते हैं।
3. पूजा और परिक्रमा
- महिलाओ द्वारा हल्दी, रोली, कुमकुम और नारियल से होलिका की पूजा करती हैं।
- इसके बाद होलिका की परिक्रमा करते हैं और उसमें सूखी लकड़ियाँ डालते हैं।
- अंत में होलिका में अग्नि प्रज्वलित करते है।
4. होलिका की राख का महत्व
होलिका दहन के बाद जो रख होती है उसको पवित्र मानते है । इस राख को माथे पर तिलक लगाने से नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।
होलिका दहन से जुड़ी परंपराएँ और मान्यताएँ
1. गुजरात में "हुताशनी महोत्सव"
भारत के गुजरात राज्य में होलीका दहन को हुताशनी महोत्सव के नाम से पहचानते है, और लोग होलिका में अग्नि जलाकर चारों ओर घूमकर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
2. उत्तर भारत में "होलिका की राख" का महत्व
होलिका की राख को उत्तर प्रदेश और बिहार में लोग तिलक के रूप में लगाते हैं, क्योंकि इसे शुभ और पवित्र माना जाता है।
3. मध्य प्रदेश और राजस्थान में "नई फसल" का पूजन
मध्य प्रदेश और राजस्थान में किसान भाइयो द्वारा गेंहू और चने की नई फसल को होलिका में चढ़ाकर भगवान को अर्पित करते हैं।
निष्कर्ष | Holika Dahan Ka Mahatva
होलीका दहन का पर्व सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, अपितु यह एक ज्ञान व् जीवन दर्शन प्रतीक है। यह पर्व हम सबको सिखाता है कि भक्ति, सत्य की हमेशा जीत होती है, और अहंकार और अधर्म का अंत तय है। होलिका दहन का पर्व क्यों मनाया जाता है, इसका यही असली उद्देश्य है कि हम अपने जीवन से नकारात्मकता को हटाएँ और सच्चाई के रास्ते पर ही चलें।
आप सभी को होलीका दहन और होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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